लोकसभा ने 27 जुलाई 2016 को स्वयंसेवी संघटन (एनजीओ), ट्रस्ट चलाने वाले लोगों, लोकसेवकों और कर्मचारियों के स्वयं तथा अपने करीबी संबंधियों की संपत्तियों की अनिवार्य रूप से घोषणा करने संबंधी लोकपाल और लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक 2016 को बिना चर्चा के पारित कर दिया.
इसमें अनुच्छेद 44 में संशोधन किया गया है. इसके तहत सरकारी कर्मचारियों को पदभार ग्रहण करने के तीस दिन के भीतर अपनी सम्पत्ति, लेनदारी और देनदारी का विवरण देना अनिवार्य होगा.
शून्यकाल में यह विधेयक प्रस्तुत किया गया. संशोधन के जरिये लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम को कमजोर करने का प्रयास नहीं किया गया. सरकार इसे और अधिक सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है. 31 जुलाई संपत्ति के बारे में ब्योरा देने की आखिरी तारीख है. इसी लिए यह विधेयक आवश्यक रूप से पारित किया गया.
लोकपाल के बारे में- उच्च सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार की शिकायतें सुनने एवं उस पर कार्यवाही करने के निमित्त पद है.स्टॉकहोम में हुए सम्मलेन में वर्षों पूर्व आम आदमी की प्रशासन के प्रति विश्वसनीयता तथा प्रशासन के माध्यम से आम आदमी के प्रति सत्तासीन व्यक्तियों की जवाबदेही बनाए रखने हेतु इस संबंध में विचार-विमर्श हुआ.लोक सेवकों के आचरण की जांच और प्रशासन के स्वस्थ मानदंडों को प्रासंगिक बनाए रखने के संदर्भों की पड़ताल भी की गई.
इसके बाद इसकी आवश्यकता महसूस की गयी. लोकायुक्त के बारे में- लोकायुक्त (लोक + आयुक्त) भारत के राज्यों द्वारा गठित भ्रष्टाचाररोधी संस्था है.यह राज्य सरकार का कोई विभाग नहीं है और न ही इसके कार्य में सरकार का कोई हस्तक्षेप है.इसका गठन स्कैंडिनेवियन देशों में प्रचित 'अंबुड्समैन' (Ombudsman) की तर्ज पर किया गया.लोकायुक्त संस्था का सृजन जन साधारण को स्वच्छ प्रशासन प्रदान करने के उद्देश्य से लोक सेवकों के विरूद्ध भ्रष्टाचार एवं पद के दुरूपयोग सम्बन्धी शिकायतों पर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से जॉंच एवं अन्वेषण करने हेतु लोकायुक्त तथा उप-लोकायुक्त अधिनियम, 1973 के अन्तर्गत हुआ.