राजकोट के 49 वर्षीय जगदीश त्रिवेदी ने जिद से आसमान झुकाने वाली पंक्तियों को सच कर दिखाया। अगर इंसान में लगन और कुछ करने का जज्बा हो तो कोई भी लक्ष्य दूर नहीं रह सकता। बस इसी बात को अपने जेहन में रख जगदीश ने एक, दो नहीं बल्कि तीन बार पीएचडी की उपाधि धारण की।
जगदीश के तीन बार पीएचडी की उपाधि लेने के पीछे का कारण भी बड़ा दिलचस्प है। जागरण डॉट कॉम में प्रकाशित समाचार के अनुसार राजकोट निवासी जगदीश त्रिवेदी कक्षा 11 और 12 में फेल हो गए थे। इसके बाद उन्होंने ने विज्ञान विषय को छोड़ दिया और कला वर्ग से पढ़ाई शुरू कर दी। साथ ही अपने मन में यह ठाना कि दुनिया को सााबित कर के दिखाएंगे कि वे कमजोर छात्र नहीं हैं, बस फिर क्या था। अथक मेहनत और निर्धारित लक्ष्य ने उनको सफलता दिलाई और उन्होंने तीन बार पीएचडी की उपाधि धारण की।
डॉ. त्रिवेदी ने पहली पीएचडी दिवंगत साहित्यकार देवशंकर मेहता पर की, दूसरी पीएचडी हास्य कलाकार शहाबुद्दीन राठौर पर और तीसरी पीएचडी उन्होंने आध्यात्मिक गुरू मोरारीबापू पर की। पीएचडी के विषयों के बारे में डॉ. त्रिवेदी बताते हैं कि इन तीन लोगों की वजह से ही इनके जीवन में अमान परिवर्तन आया। इसलिए इन पर शोध कर आभार व्यक्त किया।
इसके अलावा जगदीश ने कवि हरिवंशन राय बच्चन की मशहूर कविता मधुशाला का गुजराती में अनुवाद भी किया है। इतना ही नहीं इन्हें 7 पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। जिन्में गुजरात साहित्य परिषद द्वारा जाने वाला ज्योतिंद्र दावे पारितोषिक पुरस्कार भी शामिल है।
फेल होना भी सिखाता है बहुत कुछ
फेल होने वाले बच्चों को लेकर जगदीश त्रिवेदी का कहना है कि पास और फेल एक सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों ही बहुत कुछ सिखाते हैं, बस जरूरत है इसे देखने की और जीवन में उतारने की, इसलिए फेल हुए बच्चों को निराश होने की जरूरत नहीं बल्कि उनसे जीवन में सीखें और आगे बढ़ें।